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अनुभूति में मुसव्विर रहमान की रचनाएँ-

अंजुमन में-
इक अधूरी सी मुलाकात
कैसा अंधेर है
कौन सा लम्हा था
चमक रही हैं आँखें
जो हर इक बात पर

 

कैसा अन्धेर है

कैसा अन्धेर है एहसास कराने निकले
मशअलें लेके जो शहरों को जलाने निकले

गीत हम अपनी वफ़ाओं के सुनाने निकले
फ़ूटकर झरनों से उल्फ़त के तराने निकले

आपसे मेरा तआल्लुक़ कोई कल का तो नहीं
मैंने लम्हों को कुरेदा तो ज़माने निकले

मुझसे आती ही नहीं बात बनानी लेकिन
तेरे लफ़्ज़ों के बहुत दूर निशाने निकले

वक़्त किस तरह गुज़र जाता है एहसास हुआ
फूल सी बेटी के जब चेहरे प' दाने निकले

मुझको एहसासे-तबाही ने रुलाया है बहुत
रास्ता काट के जब दोस्त पुराने निकले

खुद को वो भीड़ का इक हिस्सा बना लेते हैं
मेरे इस दौर के बच्चे तो सयाने निकले

रात वीरान सी खंडहर थी ‘मुसव्विर’ मेरी
अश्क किस देवि पे हैं फ़ूल चढाने निकले

१३ जनवरी २०१४

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