अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में ओम प्रकाश 'नदीम' की रचनाएँ—

नई रचनाओं में-
चल पड़ा दरिया
जिक्र मत करना
ये न समझो
सामने से

अंजुमन में-
नज़र आते हैं
बंद घर में
मर्तबा हो
सपने में


 

 

नज़र आते हैं

नज़र आते हैं जो जैसे वो सब वैसे नहीं होते।
जो फल पीले नहीं होते वो सब कच्चे नहीं होते।

जहाँ जैसी ज़रूरत हो वहाँ वैसे ही बन जाओ,
अगर ऐसे ही होते हम तो फिर ऐसे नहीं होते।

भरे बाज़ार से अक्सर मैं ख़ाली हाथ आता हूँ,
कभी ख्वाहिश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते।

शरारत जिसके सीने पर हमेशा मूँग दलती है,
वो आँगन काटता है घर में जब बच्चे नहीं होते।

न होते धूप के टुकड़े न मिलता छाँव को हिस्सा,
अगर पेड़ों पे इतने एकजुट पत्ते नहीं होते।

२४ नवंबर २००५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter