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अनुभूति में ओम प्रकाश 'नदीम' की रचनाएँ—

नई रचनाओं में-
चल पड़ा दरिया
जिक्र मत करना
ये न समझो
सामने से

अंजुमन में-
नज़र आते हैं
बंद घर में
मर्तबा हो
सपने में

 

सामने से

सामने से कुछ सवालों के उजाले पड़ गये।
बोलने वालों के चेहरे जैसे काले पड़ गये।

वो तो टुल्लू की मदद से आस्माँ धोते रहे।
और जमीं की प्यास को पानी के लाले पड़ गये।

जाने क्या जादू किया उस मजहबी तकरीर ने,
सुनने वाले लोगों के जहनों पे ताले पड़ गये।

भूख से मतलब नहीं उनको मगर ये फिक्र है,
कब कहाँ किस पेट में कितने निवाले पड़ गये।

जब हमारे कहकहों की गूँज सुनते होंगे गम।
सोचते होंगे कि हम भी किसके पाले पड़ गये।

रहनुमाई की नुमाइष भी न कर पाये ’नदीम’
दस कदम पैदल चले पैरों में छाले पड़ गये।

२ जुलाई २०१२

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