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अनुभूति में प्रभा दीक्षित की रचनाएँ

अंजुमन में—
कभी मुझसे कोई आकर
जाने कितने लोग खो गए
नदी की बाढ़ में

यों भरोसा तो नहीं
हरी डाल से

 

जाने कितने लोग खो गए

जाने कितने लोग खो गए इस दुनिया के मेले में
बड़े-बड़े सरदार खो गए इस दुनिया के मेले में।

सुबह सुनहरी धूप नशीली शाम रंगीली रात हुई
मौसम कितने रंग समो गए इस दुनिया के मेले में।

मेला तो अब भी लगता है जहाँ बाजार हँसा करते
अंत समय में लोग रो गए इस दुनिया के मेले में।

सुख-दुख के बँटवारे में कुछ लोगों ने बेईमानी की
समझा आम बबूल बो गए इस दुनिया के मेले में।

गाँव, शहर या देश, विश्व में लड़ते रहे जमाने से
सब खूनी इतिहास हो गए इस दुनिया के मेले में।

’प्रभा‘ रेत के सागर में मेरी कविता की बूँद गिरे
जीवन के दो पल भिगो गए इस दुनिया के मेले में!

१६ सितंबर २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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