अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में प्रभा दीक्षित की रचनाएँ

अंजुमन में—
कभी मुझसे कोई आकर
जाने कितने लोग खो गए
नदी की बाढ़ में

यों भरोसा तो नहीं
हरी डाल से

 

नदी की बाढ़ में

नदी की बाढ़ में बेबस किनारे डूब जाते हैं
सहारों के सितम से बेसहारे डूब जाते हैं।

कभी मजबूरियाँ ऐसी भी होती हैं निगाहों की
नजर के पास आने तक इशारे डूब जाते हैं।

किसी खुशहाल बस्ती को बसाने के लिए अक्सर
गमों की मार खाकर गम के मारे डूब जाते हैं।

हमारे गाँव के बच्चे गरीबी की तलैया में
नहाते वक्त गफलत में उघारे डूब जाते हैं।

अँधेरी रात के व्यापारियों ने खुद भी देखा है
कि जब सूरज निकलता है, सितारे डूब जाते हैं।

गजल के गहरे सागर की सतह पर तैरने वाले
कई अशआर बेचारे कुँवारे डूब जाते हैं!

१६ सितंबर २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter