अनुभूति में
प्रभा मजूमदार की रचनाएँ—
छंदमुक्त में दो लंबी कविताएँ—
इन दिनों
बयान जारी रखते |
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इन दिनों
इन दिनों
बार बार
उदास हो जाता है मन
यों ही बेबात। बिन कारण ही
उठती रहती है खीझ।
नाक पर ही चढ़ा
बैठा रहता है गुस्सा।
हर समय
किसी अनहोनी की आशंका से
काँपते रहते हैं प्राण।
इन दिनों
महसूस नहीं होती
सम्बन्धों की आँच।
बारिश में पता नहीं चलती
सोंधी मिट्टी की सुगन्ध।
वसंत में नहीं खिलती बगिया।
खत्म हो गये हैं भीतर के सारे कौतुहल
उत्कंठा रोमांच
और संतृप्ति के भाव।
इन दिनों
बच्चों के मासूम सवालों से
लगने लगा है डर।
उनकी आँखों में तैरते सपनों को देख कर
खुले आकाश के विस्तार को देख कर
होने लगती है
चिंता कुछ और गहरी।
होने लगता है
उन पंखों को शक्ति दे सकने के
अपने सामर्थ्य पर सन्देह।
इन दिनों
कहीं भी जाने का दिल नही करता।
न ही रहती है किसी की प्रतीक्षा।
फोन की घंटी बजने पर भी
झुँझलाहट ही होती है कि
जरूर होगा किसी मार्केटिंग एजेंसी का।
इन दिनों
नहीं देना चाहती किसी बात पर राय
और न ही लेना चाहती हूँ बहस में हिस्सा।
गलत को गलत
और सही को सही कहना तो
कबसे छोड दिया मैंने
इन दिनों
किसी की खुशी पर नहीं होती है खुशी
और न ही छू पाती है किसी की कोई पीडा।
किसी भी मदद के लिये
उठने से पहले हाथ
सोचने लगता है दिमाग
नफे नुकसान का हिसाब।
इन दिनों
किसी भी अजनबी को देखकर
होने लगता है सन्देह।
कोई कुछ भी पूछे तो लगता है
जरूर होगा
कोई भेदिया।
घर की दीवारें ही न रख रही हों
मेरी हर चीज पर नजर।
अपने से ही नजरें चुरा कर
जीने लगी हूँ इन दिनों।
इन दिनों
सुबह नहीं होती
सूरज की पहली किरण के साथ।
ताजी हवा के
खुशनुमा झोंकों के साथ।
लय ताल रागों के साथ।
मन्दिर की घंटी और
अज़ान की आवाजों के साथ।
इन दिनों
सुबह चिल्लाती है
अलार्म के कर्कश शोर के साथ।
स्कूल बसों के तेज और बेचैन हार्न के साथ।
पानी के लिये होती लडाइयों के साथ।
दिन भर को उदास कर देने वाली अखबार
टी।वी। की खबरों के साथ।
न खत्म किये जा सकने वाले कामों की
लम्बी फेहरिस्त के साथ।
ढेर सारे बिलों को चुकाने की
आखिरी तारीख होने की धमकी और चेतावनी के साथ।
एक लम्बी थकान भरी भागमभाग के साथ।
इन दिनों
सूचनाओं का विस्फोट
चिथड़े-चिथड़े कर रहा है समझ और सोच।
तेज चौन्धियाती रोशनी ने
अन्धा कर दिया है विवेक।
विश्लेषण का काम छोड दिया गया है
कुछ नियुक्त विद्वानों
और विशेषज्ञों के लिये।
इन दिनों
प्रश्नों का उत्तर
सोचना नहीं लिखना नहीं
टिक करना होता है एक कॉलम में
परोसे गये चार ऑप्शंस में से।
वही कहलाता है आपका निर्णय।
प्राथमिकताएँ सूचकांक की तरह बदलती हैं।
इन दिनों
टॉक टाइम तो बहुत है आपके फोन में
मगर बात के लिये वक्त नहीं और
जिनके पास वक्त है उनसे बतियाने वाला कोई नहीं
इन दिनों
हाथों में रिमोट तो है पर उससे सीन कुछ
बदलता नहीं।
इन दिनों
इस कठिन समय में
जब बाजार में बिकती है
प्रेम की नई नई परिभाषाएँ
व्याख्यायें उदाहरण कीर्तिमान
विशेषज्ञों सलाहकारों की फौज
द्वारा
जारी की जाती सलाहें सूचनायें चेतावनियाँ
डिजाइनर्स निर्मित प्रेम के
रंगबिरंगी अनूठे प्रकारों के चित्र
मॉडल्स आकृतियाँ।
सुन्दर अक्षरों में लिखी हुई उनकी खूबियाँ।
छोटे से कॉलम में छपी
शर्तें एक्सपायरी तारीख वगैरह।
मैं किसी उपेक्षित संग्रहालय के
कोनों दराजों में ढूँढती हूँ
ढाई आखर का यह शब्द प्रेम!
अपने मूल स्वरूप और सम्वेदना में
जीवित बचा हो शायद।
६ अक्तूबर २०१४ |