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अनुभूति में प्रमोद कुमार कुश तनहा की रचनाएँ-

नई ग़ज़लें-
आग अश्कों से लगा लेंगे
दरो दीवार की हद से निकल के
रात हमने नींद ली
हम ये समझे थे

अंजुमन में-
ग़म नहीं है
चांद की तलाश में
फिर वही तनहा सफ़र
बाज़ार चल रहा है
बेशक हुआ करे
सर आसमाँ पे रख
वो कहीं टकराएँ तो
सिर्फ़ हम थे
हम चल दिए

 

आग अश्कों से लगा लेंगे

आग अश्कों से हम लगा लेंगे
उनके दामन से फिर हवा लेंगे

सिर्फ़ मुड़-मुड़ के देखते जाओ
बेवफ़ाई का ग़म उठा लेंगे

सोच पे आपकी हुकूमत है
एक शायर से और क्या लेंगे

आप बैठे हैं दिल के शीशे में
हाले - दिल आपको सुना लेंगे

आप 'तनहा' का साथ दे दें तो
जश्ने-महफ़िल को हम चुरा लेंगे

२५ फ़रवरी २००८

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