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बरसों निभाया
शाम से उदासी
हज़ारों नेकिया

  हज़ारों नेकियाँ

हज़ारों नेकियाँ फिर भी, जहाँ में नाम नहीं
वो बदनसीब हैं, दुनिया में जो बदनाम नहीं

बड़ी हसीन-सी दुनिया है, इस मोहब्बत की
इसे दुनिया के रिवाजों से कोई काम नहीं

ज़हर का जाम पिलाओ तो अपनी आँखों से
मैं अपनी जान न दे दूँ, तो मेरा नाम नहीं

कई गुनाह जिनके नाम हुआ करते थे
बन गए आज वो मुंसिफ़, कोई इल्ज़ाम नहीं

किसी के बस में नहीं, जो उसे ख़रीद सके
वो है ग़रीब मगर, ज़र का वो गुलाम नहीं

वो जिस निगाह ने लूटी है ज़िंदगी मेरी
उसी नज़र को मेरी ज़िंदगी से काम नहीं

बड़ा अजीब है, ज़िद्दी है जिस्म इन्सां का
जब तलक रूह न निकले, उसे आराम नहीं

२१ सितंबर २००९

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