अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सर्वेश कुमार 'सर्वेश' चन्दौसवी की रचनाएँ-

अगर भूले से
कमरे में सजा के रक्खा है
ग़म के पैहम
ज़ख़्म बदन पर
वो जब कोई भँवर पैदा करेगा

 

  अगर भूले से

अगर भूले से आ जाती हवाएँ बन्द कमरे में।
तो घुट कर मर नहीं पाती दुआएँ बन्द कमरे में।।

सहर की सुर्ख किरनों ने किया महसूस शिद्दत से।
मुसलसल रात भर बरसी घटाएँ बंद कमरे में।।

सिवा मेरे न सुन पाया कोई कुछ इस तरह मैंने।
ब-नामे-हिज्र तुझको दीं सदाएँ बंद कमरे में।।

जो अपने सख्त जुम्लों से करे नंगा सियासत को।
वो पागल रात-दिन काटे सजाएँ बंद कमरे में।।

हवाओं! जर्द पत्तों को न छेड़ो शोर होता है।
अधूरा ख़्वाब बुनती हैं, वफ़ाएँ बंद कमरे में।।

वो दोनों ही मुहज्‍ज़ब हैं, महर ये बारहा देखा।
हुई हैं ज़ख्म आलूदा क़बाएँ बंद कमरे में।।

बचाना ग़ैर मुमकिन है मुझे दस्ते अजल से तो।
वो क्यों 'सर्वेश' देते हैं दवाएँ बंद कमरे में।।

२२ दिसंबर २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter