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अनुभूति में सविता असीम की रचनाएँ-

अंजुमन में-
किया रूह को
डर कैसा रुसवाई का
लोग जब अपनापन जताते हैं
हमें ये सोचके रोना पड़ेगा
हैं आँखें खुश्क

 

हैं आँखें खुश्क

हैं आँखें खुश्क रोये जा रही हूँ
मैं अपना दर्द ढोये जा रही हूँ

तुझे पा लेने की इस धुन में मैं भी
मुसलसल ख़ुद को खोये जा रही हूँ

उगेगी कब फ़स्ल इन्सानियत की
वफ़ा के बीज बोये जा रही हूँ

बहाने जागने के सैकड़ों हैं
मगर मैं हूँ कि सोये जा रही हूँ

मोहब्बत की कहानी लिख रही हूँ
कलम ख़ूँ में डुबोये जा रही हूँ

ग़ज़ल के रेशमी धागों पे ‘सविता’
मैं बस आँसू पिरोये जा रही हूँ

१६ जनवरी २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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