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अनुभूति में सूबे सिंह सुजान की रचनाएँ— 

अंजुमन में--
खूबसूरत जिन्दगी
जिधर भी जाऊँ
ये फूल की किस्मत है

 

जिधर भी जाऊँ

जिधर भी जाऊँ सियासत खड़ी मिले मुझको
मैं चाहता हूँ महब्बत खड़ी मिले मुझको।

मेरे वतन में क़यामत का राज़ चलता है,
डरी-डरी सी शराफ़त खड़ी मिले मुझको।

है ख़ौफनाक़ नज़ारा मगर नहीं डरते,
नदी किनारे इमारत खड़ी मिले मुझको।

कि बात-बात पे लडते हैं हम, मगर देखो,
गली-गली में नसीहत खड़ी मिले मुझको।

सभी के चेहरों पे मायूसी छाई रहती है,
मगर दिलों में सदाक़त खड़ी मिले मुझको

१ सितंबर २०१४

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