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अनुभूति में सुबोध श्रीवास्तव की रचनाएँ-

छंदमुक्त-
कविता के लिये
चीखना मना है
तटबंध
तुम मेरे लिये
भूकंप
सिलसिला

अंजुमन में-
आदमी कितना निराला
जलते सूरज की आँखों में
पत्थरों के इस शहर में
पीपल की छाँह
वादियों में

संकलन में-
गंगा- एक अनूठी संस्कृति
शुभ दीपावली- दीपों की माला सजी
           दुल्हन सी सजी धरती
पीपल- पीपल की छाँव
रघुनंदन वंदन- पावन एक स्वरूप है
ममतामयी- नन्हीं सीखों से बड़ा
मेरा भारत- प्यारा हमको देश
         लाल किला
वर्षा मंगल- रिमझिम के बाद
फूल कनेर के- कनेर का प्यार
बेला- बेला के फूल
मातृभाषा के प्रति- हिंदी का संसार

'

तटबंध

नदी के
दो तटबंधों से हम
उस पार
तुम,
इस पार मैं।
यूं हम
कतई पराए नहीं हैं
क्योंकि-
जब-जब रोई है नदी
हम दोनों की ही
आंखें भीगीं,
नदीं
जब भी उफनाई
बाढ़ में-
मैं भी खो गया
तुम भी
लेकिन-
पता नहीं क्यों
अपना दर्द
खामोशी से
पीते रहे हम।
पास बहती हवा
फुसफुसाकर
कानों में कह जाती है
अक्सर
कि नदी किनारे
जिन्दगी
इसी तरह साँस लेती है।

१२ दिसंबर २०११

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