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अनुभूति में सुल्तान अहमद की रचनाएँ-

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इन कूओं के पानी से
इसमें मानी क्या
गायब
तेरे माथे पे सलवट

वो आग फेंक गये

अंजुमन में-
गजल ढूँढते हैं
मिले ने मिले

 

 

गज़ल ढूढते हैं

रास्ते जो हमेशा सहल ढूँढ़ते हैं,
हो–न–हो वो सराबों में जल ढूँढ़ते हैं।

जब भी लगता है अब इम्तहां है जरूरी,
उलझनें हम खड़ी करके हल ढूँढ़ते हैं।

जिनके चलने से हो जायें राहें मुअत्तर,
आदमी ऐसा हम आजकल ढूँढ़ते हैं।

बीज ऊसर में जो फेंकते हैं हमेशा,
कितनी शिद्दत से उसमें फसल ढूँढ़ते हैं।

धड़कनों से भरी बस्तियां छोड़ आये,
पत्थरों के नगर में गज़ल ढूँढ़ते हैं।

८ दिसंबर २००२

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