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वो आग फेंक गये

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गजल ढूँढते हैं
मिले ने मिले

 

 

वो आग फेंक गये

वो आग फेंक गये तुम मकान पर मेरे,
अभी तलक है धुआँ आस्मान पर मेरे।

वो गमगुसार थे, रखते रहे मुसल्सल जो,
नये पहाड़ थके-से जहान पर मेरे।

मेरी उड़ान पे पिंजरे में है मलाल उसको,
बुरी नजर न करो मेह्रबान पर मेरे।

बना-बनाके रखे जा रहा हूँ उनके लिए,
करेंगे नाज जो तीरोकमान पर मेरे।

कभी हुआ जो मुकम्मल न जाने क्या होगा,
उठा है शोर अधूरे बयान पर मेरे।

२९ जुलाई २०१३

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