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अजनबी सी राह पर
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धार के विपरीत चलना

भाग रहे सब
मौसम सुहाना

'

अजनबी सी राह पर

अजनबी सी राह पर चलना पड़ा।
मान औ' अपमान सब सहना पड़ा।

क्षीण आशा और गहरी धुंध में,
झोंपड़ी के दीप सा जलना पड़ा।

आ न पाये ठोकरों में कोई भी,
हर कदम यह सोचकर धरना पड़ा।

गरजते बादल कभी बरसे नहीं,
आँसुओं से प्यास को बुझना पड़ा।

वक्त को हिम्मत पथिक की देखकर,
मुश्किलों के दौर में झुकना पड़ा।

प्यार के पंछी उड़ाने भर रहे,
अड़चनों को राह से हटना पड़ा।

सत्य निष्ठा मार्ग के ही राही का,
विजय श्री को शुभ वरण करना पड़ा।

७ अप्रैल २०१४

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