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अजनबी सी राह पर
आये बादल
धार के विपरीत चलना

भाग रहे सब
मौसम सुहाना

'

भाग रहे सब

धन वैभव के सुख के पीछे भाग रहे सब।
नैतिकता का गाते मिथ्या राग रहे सब।

बाढ़भरी नदियों के तट पर बसने वाले,
डर के मारे सारी रातें जाग रहे सब।

चाह रहे हैं नैतिकता कायम हो जाये,
पर भौतिक सुविधा के पीछे भाग रहे सब।

कुर्सी हथियाने की चाहत में देखो तो,
भारत के माथे पर लगते दाग रहे सब।

कल तक ऊँची सीख दिया करते थे जग को,
दूषित आचरणों के चलते भाग रहे सब।

आज जमाने को नेताओं से बचना है,
जनसेवा की खादी में ये नाग रहे सब।

फैशन के कारण कपड़ों से कर ली तौबा,
ताप रहे सर्दी के मारे आग रहे सब।

७ अप्रैल २०१४

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