अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सुशील गौतम की रचनाएँ-

अंजुमन में-
असर मेरी मुहब्बत का
एक कतरा हूँ
तुम गए तो
तुम मिले तो
सुलगती धूप में

संकलन में-
नया साल- आया फिर नया वर्ष

'

असर मेरी मुहब्बत का

असर मेरी मुहब्बत का दिखा तेरी नज़र में है
खबर ये आग सी फैली हुई सारे शहर में है।

कठिन है रहगुज़र फिर भी नहीं है फिक्र रत्ती भर
नज़र पुर नूर दिलवर साथ में जबसे सफ़र में है।

नहीं देखा कभी मैंने कि पहुँचा हूँ कहाँ तक मैं
चला जिस वक़्त से घर से फ़कत मंज़िल नज़र में है।

सहज भी है सरल भी है लबालब प्रीत से जीवन
ज़हर सारा भरा इसमें अगर में है मगर में है ।

मधुर है ये मदिर भी है ख़ुमारी की सतत धारा
जिसे हम प्यार कहते हैं लहर में है भँवर में है।

दरो-दीवार गलियों से मदिर सी आ रही खुश्बू
वो मेरा यार प्यारा आज फिर आया शहर में है।

२० जनवरी २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter