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अनुभूति में विजय प्रताप आँसू की रचनाएँ-

नयी रचनाएँ-
कुछ कमाल होने दो
निर्भया के बाद भी
पंख फड़फड़ाता हूँ
वक्त सा हुनर दे दो
सवाल उठाती है जिंदगी

अंजुमन में-
कुछ साजिशों से जंग है
ग़ज़ल में दर्द की तासीर
सब्र उनका भी
सर बुलन्द कर गया
हर गाम पर

 

सवाल उठाती है ज़िन्दगी

उनके ही तख्.तो–ताज सजाती है ज़िन्दगी
जिनके हजारों नाज़ उठाती है ज़िन्दगी

ज़िन्दा हूँ मैं, सुकून भी है, शहर-ए-यार में
फिर भी कई सवाल, उठाती है ज़िन्दगी

तेरे शहर में आज भी, खानाबदोश हूँ
वैसे बड़े मकान, बनाती है ज़िन्दगी

उनकी नजर पड़ी तो शहंशाह हो गया
वरना फ़कत उधार, चुकाती है ज़िन्दगी

लोगों के ऐतबार का, शायद सवाल था
वरना कहाँ हिसाब, चुकाती है ज़िन्दगी

यह जिन्न भी चिराग से, निकलेगा एक दिन
वादों की अब मियाद, बढ़ाती है ज़िन्दग़ी

१ मार्च २०१६

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