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अनुभूति में अभिज्ञात की रचनाएँ-

नए गीतों में-
कुशलता है
भटक गया तो
वह हथेली
क्षण का विछोह
क्षतिपूर्तियाँ

अंजुमन में -
आइना होता
तराशा उसने
दरमियाँ
रुक जाओ
वो रात
सँवारा होता
सिलसिला रखिए
पा नहीं सकते

कविताओं में -
अदृश्य दुभाषिया

आवारा हवाओं के खिलाफ़ चुपचाप
शब्द पहाड़ नहीं तोड़ते
तुमसे
हवाले गणितज्ञों के
होने सा होना

गीतों में -
अब नहीं हो
असमय आए
इक तेरी चाहत में
उमर में डूब जाओ
एकांतवास

तपन न होती
तुम चाहो
प्रीत भरी हो
मन अजंता
मीरा हो पाती
मुझको पुकार
रिमझिम जैसी
लाज ना रहे

संकलन में -
प्रेमगीत-
आख़िरी हिलोर तक
गुच्छे भर अमलतास-
धूप

 

 

 

होने सा होना

सावधान अत्याधिक खाद
करती जाती है बंजर

अत्याधिक लोगों से होती पहचान
दरअसल करती जाती है हमें उन्हीं से अपरिचित
इस-उस से हाथ मिलाते हुए
मैंने महसूस किया है
मेरे हाथों ने खो दी है
अपनी उष्मा
अब मेरे हाथों और दस्तानों में कोई फ़र्क नहीं है।

किसी और का हाथ हो कि कुर्सी का हत्था
कोई प्रतिक्रिया नहीं होती

मैं अपनी स्मृति को स्मृति, हाथ को हाथ और यात्रा को
यात्रा
बने रहने देना चाहता हूँ
मैं दरअसल जुड़ना चाहता हूँ उससे
जो है सो हो मेरे लिए भी
अपनी पूरी गरिमा के साथ

मैं चाहता हूँ
कर लूँ दो - चार - दस दिन लगातार
अपने आपको एक छोटे से कमरे में कैद
और महसूस करूँ उसके चप्पे चप्पे में बसी तमाम आहटों को
जो किसी चींटी के रेंगने तक की भी हों
उसकी गंध जो सिरके की तरह हो सकती है पुरानी और स्वाद भरी
दीवार में उखड़े हुए चूने को भी बसा लेना चाहता हूँ
अपनी स्मृतियों में
खूब-खूब पहचान लेना चाहता हूँ उनमें बनी आकृतियों को
जैसे पहचानता था बचपन में
जिनसे हल्की सी भी हो छेड़छाड़ तो पता चल जाए फौरन
बस हिलते - डुलते बादलों-सा वे ना बदले अपना हाव भाव

चाहता हूँ जान लूँ कितनी देर तक हिलते है फैन के डैने
बिजली का स्विच आफ होने के बाद

कितनी देर तक हिलती है हवा खुली खिड़की से आती हुई
जब वे सुस्ता रहे होते हैं
आदमी को भरी गर्मी व उमस में देने के बाद राहत
उल्टे लटके -लटके बेताल की तरह
कई बार तो वे लगातार हफ्तों चलते
रह जाते है बिना शिकायत
किसी बाल-बच्चों वाले घर में

चाहता हूँ पहचान लूँ नल से छूटे पानी का संगीत
जिसका बदल जाता है सुर
बर्तन के बदलने के साथ-साथ

चाहता हूँ
ठीक से महसूस करना
अपने रोमों पर चादर की छुअन
दुलारना उसके रेशे रेशे को
जो भर चुके हों मुझे एक सुकून से
जब मैं कर चुका होऊँ थक हार कर अपने आपको उसके हवाले

मैं चाहता हूँ गहरी नींद से सहसा आँख खुलने पर
अंधेरे में भी याद रहे
मैं जालंधर हूँ इंदौर
अमृतसर में हूँ या कोलकाता
किसी ट्रेन की बर्थ पर लेटा हूँ या किसी गेस्ट हाऊस में

दरअसल मैं अपने हाथ को किसी हाथ में देने के बाद
महसूस करना चाहता हूँ एक थरथराहट और एक मासूम-सा स्पंदन

यह मेरी ज़िंदगी के लिए बेहद ज़रूरी है

बेहद ज़रूरी है कि मैं हाथों का इस्तेमाल
अलविदा और स्वागत के लिए हिलाने और मिलाने के पहले
उसके होने को महसूस करने में करूँ
हाथ के होने में अपने आपको भी शामिल करूँ।

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