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अनुभूति में अभिरंजन कुमार की रचनाएँ—

नई रचनाओं में—
तुम्हारी आँखों के बादलों में
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कविताओं में—
चालू आरे नंगा नाच
भस्मासुर जा रहा
हँसो गीतिक हँसो
होली बीती

  होली बीती

रही विरस, नीरव, नत रीती।
बिना पुआ के होली बीती।

मैं अपने कमरे का द्वार,
खोल निकलता बारंबार।
किंतु न रंग किसी ने डाला
समझ न पाया गड़बड़झाला।
कारण एक रहा हो सकता
शायद मूल्यों की स्फीति!

लिया किसी ने नहीं नाम तक
चढ़ा न मुझ पर रंग शाम तक।
आखिरकार मिटाने झेंप
लिया रंग खुद मुख पर लेप।
मैं मरघट-सा बना रहा
पर दुनिया रही जागती-जीती!

प्रवाहमान था वायु अमिय भर
किंतु चोट करता था हिय पर।
पा रसाल यौवन का भार
था इतराता बारंबार।
मुझे चिढ़ाती हुई कोयलें
रही प्राण रस हँस-हँस पीती!

१ मार्च २००६

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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