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अनुभूति में अजय ठाकुर की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अब तुम बदल गए हो

काश मेरा ये प्रेम तुमसे होता
खामोश जुबा
सिंदूरी सी याद

 

अब तुम बदल गये हो

गूँध कर दर्द
तू मुझे कहना
अब तुम बदल गये हो

तेज़ धूप के चम्पई थपेड़े
दिन में
अब तुझे नहीं जलाया करेंगे
मेरे यादों की गेहुँअन
रातों को
तुझे नहीं डँसा करेगी
विरहा की भीगी बदली
सूखे में तुझे नहीं भिगोया करेगी
क्योंकि तुम और तुम्हारा प्रेम
इन सब से आगे निकल गया है

अब तुम बदल गये हो ..

उस वक़्त
मैं मौन पहाड़ों सा
चुप्पी तोड़ना चाहूँगा प्रिय
हथेलियों से नोच के हर शब्द
तेरे सामने रखना चाहूँगा प्रिय

मैं तनिक नहीं बदला हूँ
चीख चीख के ये भाव रखूँगा
मैं वही हूँ
तेरे कोल्हू का दर्द से घसीटा बैल
तेरे मुँडेरे का बंद दरवज्जा
जो तेरे संग आज़ाद होना और खुलना चाहता है
तेरे शाश्वत प्रेम में घुलना चाहता है
ये सुन लेना, फिर तू कहना
अब तुम बदल गये हो ..

२७ मई ३०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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