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अनुभूति में आकांक्षा यादव की रचनाएँ-

इक्कीसवीं सदी की बेटी
कविता
श्मशान
संपूर्ण बनू

 

 

 

संपूर्ण बनूँ

तुम गीत कहो, मैं पंक्ति बनूँ
तुम कहो ग़ज़ल, मैं शब्द बनूँ।

बिन तेरे मेरा वजूद है क्या
हो शब्द तेरे, मैं भाव बनूँ।

मेरे प्रियतम, मेरी मंज़िल तू
मैं राही, मैं पथिक बनूँ।

तुझको पाकर खुद को खोऊँ
संपूर्ण बनूँ, संपूर्ण बनूँ।।

१२ मई २००८

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