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अनुभूति में अपर्णा मनोज की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
आओ देखो
एक बार तुम भी
चाहूँ, फिर चाहूँ
जाओ देखो तो
तुम भी बुला लेना मुझे

 

 

जाओ देखो तो

जाओ, देखो तो
क्या रख आई हूँ तुम्हारी स्टडी -टेबल पर
हल्दी की छींटवाला , एक खत चोरी-भरा

पढ़ लेना समय से
खुली रहती है खिड़की कमरे की
धूप, हवा, चिड़िया से

कहीं उड़ न जाएँ
हल्दी की छींटताज़ी

आज तुम ही आना किचिन में
कॉफ़ी का मग लेने
हम्म
कई दिनों बाद उबाले हैं ढेर टेसू केसरिया
तुम्हें पुरानी फाग याद है न
मैं कुछ भूल -सी गई हूँ
कई दिनों से कुछ गुनगुनाया ही नहीं
साफ़ करती रही शीशे घर के

२८ मार्च २०११

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