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अनुभूति में अरविंद कुमार की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
आग का दरिया
ज़िंदगी
मैं और मेरी कविता
यह शहर बेजुबान क्यों?

शहर के बीच

 

यह शहर बेजुबान क्यों?

कुछ भी तो नहीं गुजरा
इधर से
काफी दिनों से
न कोई विजय जुलूस,
न कोई महान शवयात्रा
और न ही
किसी प्रेमी युगल की
तलाश में
खोजी कुत्तों का कोई झुंड
फ़िर भी,
सड़कों पर ये मुर्गे के पंख क्यों
यह शहर अचानक
बेजुबान क्यों?

१७ फरवरी २०१४

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