अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में आशा सहाय की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
आहत युधिष्ठिर
खोलो मन के द्वारों को अब
निर्वाक
प्रथम सावन
मैं सड़क हूँ

 

आहत युधिष्ठिर

एक युधिष्ठिर अदना सा।
एक युद्ध भी अदना सा।
युद्ध का भय? जय या कि पराजय?
एक युद्ध हुआ।
कुछ तीर चले
कुछ नीर बहे
कुछ अकड़ गयी
कुछ पकड़ गयी
था लेकिन मन का एक बोझ सही।
होता
जल थल का गर परिहास नहीं
भोगता कोई सर्वनाश नहीं
खोखले प्रण थे, खोखली आहें

खोखला प्रेम, खोखली चाहें
था अहंकार का रास प्रमुख।
था शक्ति मद का यह हास प्रमुख।
कारण अव्यक्त वह कीट बना
व्यक्ति के साँसों, प्राणों में
सदियों से है जो बसा हुआ
आहत करने की इच्छा ही
अस्त्रों-शस्त्रों का मूल बना
ओर युद्घ हुआ
वे भी रोये जो आहत थे
वे भी रोये गर्विष्ठ थे जो
सबने अपना सबकुछ खोया
अब कौन बचा किसपर शासन
किस किस अनार्य को आर्य बना
अपना सु विरल सिद्धांत थोप
धर्मार्थ काम और मोक्ष हेतु
इस धरा धाम से स्वर्ग प्रयाण?
वे वीर भी थे
कायर भी थे
खुद से न लड़े
तलवार उठा कर किया प्रहार
दो टुकड़े कर दिये अन्य के
खुद से लड़कर निज अन्तर पर
काश किया होता यह वार
होता न युद्ध यह महानाश
काश युधिष्ठर का सुविचार
कल्याण-हेतु गर बन जाता
थोड़े उत्तेजक वचनों से
होता न कभी वह महाप्रलय
वह महाप्रलय।

२० अप्रैल २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter