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अनुभूति में आशीष भटनागर की 
रचनाएँ — 

छंदमुक्त में-
साँस 
प्यार
प्रिय मन
डोरेस्वामी की वीणा सुनते ही
उत्तरकाशी १९९१

 

प्यार

एक शब्द से छुआ था तूने
सारे दरख्तों से ऊँचा उठ, सेमल–सा
सेमल–सा लाल हो, मन
रूई बन उड़ा था।
सिर्फ शब्द था, सिर्फ मन था।

एक शब्द था, जो सींचा था तूने
इमली के बीज से बाहर झाँकते,
सहमे सिमटे वीज–पत्रों–सा मन
प्रकाश में आने से कितना कुछ डरा था।
सिर्फ शब्द था, बीज–सिर्फ मन

मीलो लम्बा है एक शब्द
रात में खिलते सफेद फूलों की
फैलती हुई गंध–सा,
मुझ–तक तुझसे

सिर्फ शब्द है
एक मन, एक बीज,
एक फूल, एक गंध।

९ सितंबर २००२

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