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अनुभूति में अशोक आंद्रे की रचनाएँ—

छंदमुक्त में- 
उनके पाँव
उम्मीद
दर्द
नदी
बाबा तथा जंगल

 

उनके पाँव

जब से सिद्धांतों की सड़क
तैयार की है अपने अन्दर
एक खौफ
लगातार बढता जा रहा है
क्योंकि विकास के सारे रास्ते
उथली-संस्कृति की तरफ
विकसित हो रहे हैं
उसके आगे के रास्ते
गहरी ढलान की तरफ
धँसते दिखाई देते हैं।

पहाड़ जहाँ काँपते हैं,
हवा सरसरा जाती है
क्योंकि एक लहर धुएँ की
यात्रा करने लगती है,
और मनुष्य
उस धुएँ में छिपा
अपने ही लोगों का करता है विनाश
जिसके निशां
इन्हीं सड़कों पर देख
सहम जाते हैं आदिवासी
अंतस में उलझा आदिवासी
संशय से देखता है
इन सड़कों को
जो उनकी हरियाली को
लीलने लगती हैं

जीवन बचाने के लिए ये आदिवासी
सभ्यों से दूर
अपनी आकांक्षाओं में लीन
जंगल छूती हरियाली में
रोपते हैं,
नन्हें बच्चों के
पांवों के चिन्ह।

ताकि उनके जंगलों में
जीवन की शृंखला
स्थापित हो सके,
और पहाड़ों के मन में सुकून की
लहर दौड़ती रहे
क्योंकि उनके लिए इन सड़कों का
कोई महत्व नहीं है,
उनके पाँव ही
उनकी ख़ूबसूरत सड़कें हैं।

३ दिसंबर २०१२

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