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अनुभूति में अशोक कुमार पाण्डेय की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अकीका
कहाँ होंगी जगन की अम्मा ?

चाय अब्दुल और मोबाइल
नाराजगी
माँ की डिग्रियाँ

 

चाय, अब्दुल और मोबाइल

रोज की तरह था वह दिन और दफ़्तर भी
चेहरों के अलावा कुछ नहीं बदला था जहाँ वर्षों से
थके हुये पंखे बिखेर रहे थे ऊब और उदासी
फाईलें काई की बदरंग परतों की तरह बिखरीं थीं बेतरतीब
अपनी अपार निष्क्रियता में सक्रिय
आत्माओं का सामूहिक वधस्थल।

रोज की तरह घड़ी की सुईयों के एक खास संयोग पर
वर्षों के अभ्यस्त पाँव
ठीक सताइस सीढ़ियों और छियालिस कदमो के बाद पहुँचे अब्दुल की दुकान पर
चाय पीना भी आदत थी हमारी ऊब की तरह!
रोज की तरह करना था उसे नमस्कार
रोज की तरह लगभग मुस्कुराते हुये कहना था हमें-
पाँच कट
फिर जुट जाना था कुर्सियों और अखबार के जुगाड़ में
रोज की तरह जताना था अफ़सोस बढ़ती कीमतों पर

दुखी होना था बच्चों की पढाई से बीबी की बीमारी
और दफ़्तर की परेशानियों से देश की राजनीति तक पर
तिरछी निगाहों से देखते हुये तीसरे पेज के चित्र।
कि अचानक दाल में आ गये कंकड़ सी बिखर गई
एक पालीफ़ोनिक स्वरलहरी !

हमारी रोज की आदतों में शामिल नहीं था यह दृश्य
उबलती चाय के भगोने को किसी सिद्धहस्त कलाकार की तरह आँच के ऊपर नीचे नचाने
और फिर गिलासों में बराबर बराबर छानने के बीच
पहले कविता पाठ में उत्तेजित कवि सा बतियाता अब्दुल
सरकारी डाक्यूमेण्टरी के बीच बज उठे सितार सा भंग कर रहा था हमारी तंद्राएँ।

चौंकना सही विशेषण तो नहीं पर विकल्प के अभाव में कर सकते हैं आप
उस अजीब सी भंगिमा के लिये प्रयोग
जो बस आकर बस गयी उस एक क्षण में हमारे चेहरों पर
और फिर नहीं रहा सब कुछ पहले सा बदल गये हमारी नियमित चर्चाओं के विषय।
पहली बार महसूस किया हमने कि घटी कीमतें भी हो सकती हैं दुख का सबब!

हमारी कमीज की जेबों में
सम्मानसूचक बिल्लों से सजे मोबाईल की स्वरलहरियों से झर गया सम्मोहन।।।
मानो हमारे ठीक सामने की छोटी लकीर अचानक हुई हमारे बराबर-और हम हो गये बौने !

हालाँकि बदस्तूर जारी है
हमारा सताइस सीढ़ियों और छियालिस कदमो का सफ़र
अब भी रोज की तरह अब्दुल करता है नमस्कार
पहले सा ही है
पत्ती-शक्कर-दूध-अदरक का अनुपात
पर कप और होंठों के बीच मुँह के छालों सा चुभता है
मोबाईल पर चाय के आर्डर लेता अब्दुल।

आजकल हम सब कर रहे हैं इंतजार
कैमरे वाले मोबाईल के भाव गिरने का !

२ मई २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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