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अनुभूति में बालकवि बैरागी की रचनाएँ-

गीतों में-
अपनी गंध नहीं बेचूँगा
झर गए पात
शीश झुकाना क्या जाने
हैं करोड़ों सूर्य

संकलन में
मेरा भारत- सारा देश हमारा

 

शीश झुकाना क्या जाने

पराधीनता को जहाँ समझा श्राप महान
कण-कण के खातिर जहाँ हुए कोटि बलिदान
मरना पर झुकना नहीं, मिला जिसे वरदान
सुनो-सुनो उस देश की शूर-वीर संतान

आन-मान अभिमान की धरती पैदा करती दीवाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

दूध-दही की नदियाँ जिसके आँचल में कलकल करतीं
हीरा, पन्ना, माणिक से है पटी जहाँ की शुभ धरती
हल की नोंकें जिस धरती की मोती से माँगें भरतीं
उच्च हिमालय के शिखरों पर जिसकी ऊँची ध्वजा फहरती

रखवाले ऐसी धरती के हाथ बढ़ाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

आज़ादी अधिकार सभी का जहाँ बोलते सेनानी
विश्व शांति के गीत सुनाती जहाँ चुनरिया ये धानी
मेघ साँवले बरसाते हैं जहाँ अहिंसा का पानी
अपनी माँगें पोंछ डालती हँसते-हँसते कल्याणी

ऐसी भारत माँ के बेटे मान गँवाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

जहाँ पढाया जाता केवल माँ की ख़ातिर मर जाना
जहाँ सिखाया जाता केवल करके अपना वचन निभाना
जियो शान से मरो शान से जहाँ का है कौमी गाना
बच्चा-बच्चा पहने रहता जहाँ शहीदों का बाना

उस धरती के अमर सिपाही पीठ दिखाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

२० फरवरी २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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