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अनुभूति में बृजेश नीरज की रचनाएँ-

गीतों में-
कुछ अकिंचन शब्द हैं बस
ढूँढती नीड़ अपना
मछली सोच विचार कर रही
सो गए सन्दर्भ तो सब मुँह अँधेरे
स्वप्न की टूटी सिलन
हाकिम निवाले देंगे

छंदमुक्त में-
क्रंदन
कुएँ का मेंढक
गर्मी
दीवार
शब्द

 

गर्मी

मई जून की इस गर्मी में
हवा कहीं छिपकर बैठ गयी है
जैसे लोग दुबके हैं
ईंटों के नीचे।
चारों ओर फैली है
पसीने से लथपथ देहों की गंध।
दूर दूर तक कोई नहीं दिखता।
नदी में शेष है जल
आवरण भर।
पेड़ चले गए हैं कहीं
छाँव की तलाश में,
घास तलाश रही है
धरती में सिर छुपाने की जगह,
कुछेक खर पतवार खड़े हैं
सड़क की रक्षा करते;
वह सड़क जो कुछ दूर जाती है
फिर भाप बन उड़ने लगती है।
तारकोल पिघलकर
पैरों में चिपकने लगी है।

लेकिन तभी दिखता है
एक आदमी
सिर पर ईंटें ढोता।
कहीं पिघला न दे उसे भी
यह गरमी
लेकिन शायद
उसकी आँतों का तापमान
बाहर के तापमान से अधिक है।

८ जुलाई २०१३

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