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अनुभूति में बृजेश नीरज की रचनाएँ-

गीतों में-
कुछ अकिंचन शब्द हैं बस
ढूँढती नीड़ अपना
मछली सोच विचार कर रही
सो गए सन्दर्भ तो सब मुँह अँधेरे
स्वप्न की टूटी सिलन
हाकिम निवाले देंगे

छंदमुक्त में-
क्रंदन
कुएँ का मेंढक
गर्मी
दीवार
शब्द

 

मछली सोच-विचार कर रही

मछली सोच-विचार कर रही
आखिर आँख बचाऊँ कैसे

राज-सभा के बीच फँसी अब
नियति चक्र के बीच टँगी है
दुर्योधन के हाथ तीर हैं
नोक तीर की
जहर पगी है

पार्थ निहत्था खड़ा है चिंतित
राज-सभा में जाऊँ कैसे

चौसर की यूँ बिछी बिसातें
खाना-खाना कुटिल दाँव है
दुशासन की खिली हैं बाँछें
ठगा हुआ हर लोक
गाँव है

वासुदेव भी सोच रहे हैं
आखिर पीर मिटाऊँ कैसे

१० नवंबर २०१४

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