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अनुभूति में धीरज गुप्ता तेज की रचनाएँ —

अंजुमन में-
जीना मरना सब लाचारी

गीतों में-
तुम मेरे हो

छंदमुक्त में-
थैक्यू




 

 

थैंक्यू

दिल का शीशा तोड़ डाला – थैंक्यू,
मुंह से छीना है निवाला – थैंक्यू।
हुस्न से कोई गलतफहमी नहीं,
इश्क का निकला दिवाला – थैंक्यू।।

मैं अकेला चल रहा था,
आसमां भी जल रहा था,
पांव के छालों को तब हालात ने,
नश्तर चुभा कर फोड़ डाला – थैंक्यू।।

रात भर मैं सो न पाया,
जख्म दिल के धो न पाया,
लौट कर के फिर तुम्हारी याद ने,
जख्में–दिल पर नमक डाला – थैंक्यू।।

बेखुदी में काम ऐसा कर गये,
चाहते थे तुम, सनम हम मर गये,
लाश आई 'तेज' की जब सामने,
तुमने उसको नोंच डाला – थैंक्यू

८ अक्तूबर २००२

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