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अनुभूति में धीरज गुप्ता तेज की रचनाएँ —

अंजुमन में-
जीना मरना सब लाचारी

गीतों में-
तुम मेरे हो

छंदमुक्त में-
थैक्यू




 

 

तुम मेरे हो

नहीं–नहीं, तुम मेरे हो,
मेरे हो, बस मेरे हो।

तुमको मैंने
अंतर्मन में
वो स्थान दिया है,
अपने भगवानों के जैसा
तुमको मान दिया है।
नयनों में तस्वीर तुम्हारी
तुम ही सांझ सवेरे हो।
नहीं–नहीं, तुम मेरे हो . . .

मेरा उद्भव
मेरा वैभव,
सब कुछ तुम्हें समर्पण,
तुम भी अपने टूटे सपने,
मुझको कर दो अर्पण।
जीवन की पगडंडी पर जो,
साथी बनकर ठहरे हो।
नहीं–नहीं, तुम मेरे हो . . .

दीपक – कीट
पतंगा –बाती,
सब जल बैठे तुम ना आती,
कितने मास – दिवस बीते पर
आई ना कोई भी पाती।
कितने निष्ठुर बने हुए हो
निर्दय भी बहुतेरे हो।
नहीं–नहीं, तुम मेरे हो . . .

आओ आज
सिखा दू तुमको,
सच्चे प्यार की भाषा,
जीवन के दो पहलू हैं –
आशा और निराशा।
आशाओं के सागर में तुम
मोती कितने गहरे हो।
नहीं–नहीं, तुम मेरे हो . . .

तुमसे मेरी
कविताओं का,
पहिया आगे बढ़ता है,
शब्द–प्रेरणा लेकर तुमसे,
मन स्पन्दन करता है।
सूने–सूने यौवन में तुम,
सुन्दर चित्र उकेरे हो।
नहीं–नहीं, तुम मेरे हो

८ अक्तूबर २००२

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