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अनुभूति में धर्मेन्द्र कुमार सिंह 'सज्जन' की रचनाएँ-

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छाँव से सटकर खड़ी है धूप
जो भी मिट गए तेरी आन पर
दे दी अपनी जान
निजी पाप की
मिल नगर से

छंदमुक्त में-
अम्ल, क्षार और गीत
दर्द क्या है
मेंढक
यादें
हम तुम

 

जितना ज्यादा हम लिखते हैं

जितना ज्यादा हम लिखते हैं
सच उतना ही कम लिखते हैं

दुनिया के घायल माथे पर
माँ के लब मरहम लिखते हैं

अब तो सारे वैद मुझे भी
रोज दवा में रम लिखते हैं

जेहन से रिसकर निकलोगी
सोच, तुम्हें हरदम लिखते हैं

जफ़ा मिली दुनिया से इतनी
इसको भी जानम लिखते हैं

१६ मार्च २०१५

 

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