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अनुभूति में गिरीश बिल्लोरे ''मुकुल'' की कविताएँ—

क्षणिकाओं में-
चार क्षणिकाएँ

कविताओं में-
गीत गीले हुए
गुमशुदा मानसून
द्रोणाचार्य से-
दौर
प्राप्ति और प्रतीति
प्रिया तुम्हारी पैजन छम-छम
मन का पंछी
माँ

 

चार क्षणिकाएँ

साँसे

टुकुर-टुकुर छत को ताकते बूढे के लिए
भगवान से मुक्ति मांगती औलादें ..!
सब जानतें हैं मुक्ति मिलेगी
जन्म दाता से उस बेटे को जो
जो ख़ुद बूढे बाप की साँसें गिन रहा है ..!

पुरानी प्रेमिका नया परिचय

मिली पुरानी प्रेमिका
दो बच्चों के साथ
मामा का परिचय मिला,
हुआ सत्य का भास !

मुंह चलाइए

नेताजी ,
मेरे मुहल्ले में गंदगी का राज़ है.
देखिए ये कचरा वो कूड़ा जहाँ कल था वहीं आज है.
भई..! मैं क्या कर सकता हूँ आप ही बताइए ...?
पीछे से आवाज़ आई :-"आप क्या कुछ करेंगे मुंह चलाने के अलावा
सो हुज़ूर केवल अपना मुंह चलाइए ..!! "

बदलाव

पुरानी चीजें सीने से न लगाए रहना
बदलाव सच है बाकी सब रांग है
कपड़े और महबूब दौनों ही जितने जल्द हों
बदलना देना आज के समय की मांग है.

16 दिसंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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