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चार छोटी कविताएँ


जब कहने को कुछ न हो
खालीपन की आवाज सुनो
बहुत शोर होगा औ घबराहट
आहिस्ता से कुछ अफ़साने चुनो।

हसीं गीत जैसे दोस्त
न छोड़ी जाने वाली आदतों जैसे हैं
पड़ जायें तो जिंदगी आसान लगती हैं
कुछ ऐसी ही ख्वाहिश हर वक्त की है मैंने
कभी तो कहो आमीन! आमीन! आमीन!

प्यास और आदमी का रिश्ता पुराना है
और उतनी ही पुरानी है आदमी की कृतघ्नता
पर याद रखना होगा दुहरायी गयी गलतियों पर
उपकार के गीत अक्सर मर्सिया बन जाते हैं

बगीचे में रखे पानी के कटोरे से
गिलहरी, चिड़िया और कोयल ने पानी पिया
जैसे मुझे उऋण किया
एक गिरगिट भी वहीं चक्कर लगा रहा था
मुझे उस पर भी तरस आ रहा था
अब मुझे प्रतीक्षा है हरे रंग के तोतों की
वहीं पास में रख दिए है कुछ
मिर्च और भिन्डी के टुकड़े
प्रकृति के आतिथ्य में शायद कुछ जीवट तो है।

१ फरवरी २०१७

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