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अनुभूति में डा हृदय नारायण उपाध्याय की रचनाएँ-

अंजुमन में-
फूल काँटों में
फूल हम बन जाएँगे
बाकी सबकुछ अच्छा है

दोहों में-
मधुमास के दोहे

छंदमुक्त में
अनुत्तरित प्रश्न
सूरज, चाँद, फूल और चिड़िया

 

अनुत्तरित प्रश्न

इससे पहले कि दुनिया
बारूद के ढेर में बदल जाय
जीवन को जी भर के जी लो
क्या पता आज का मनु पुत्र
कल के लिए पुरातत्त्व बन जाय।
आज बुद्धि के सहारे जीने वाले कुछ लोग
ज्ञान की जगह विष बो रहे हैं
और बढ़ती हुयी विष बेलों को
षडयंत्र की खाद और द्वेष के जल से सीच रहे हैं।
अपने को वैज्ञानिक समझने वाले कुछ मस्तिष्क
निर्माण की जगह विनाश का संधान कर रहे हैं।
और मँहगू है कि इन सबसे दूर बादल के छाने और
अषाढ़ के आने पर स़ंवार रहा है
फिर से हल और बैल को।
एक पनियल सी चमक उग आती है
उसकी पथराई आँखों में
बुनने लगता है एक बार फिर से वह सपने
तैर जाती है लहलहाती फसलें
और अनाज की बखार उसकी आँखों में
वह अब भी नहीं जानता
कि आदम के ही कुछ वैज्ञानिक
और बुद्धिजीवी वंशज
अब दुनिया के अस्तित्व के लिए
एक अनुत्तरित प्रश्न हैं।

१ मई २००६

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