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अनुभूति में डॉ. जगदीश व्योम की रचनाएँ—

कविताओं में—
अक्षर
छंद
रात की मुट्ठी
सो गई है मनुजता की संवेदना
हे चिर अव्यय हे चिर नूतन

गीतों में—
आहत युगबोध के
इतने आरोप न थोपो
न जाने क्या होगा
पीपल की छाँव
बाज़ीगर बन गई व्यवस्था
हाइकु नवगीत

दोहों में—
ग्यारह दोहे

हाइकु में-
सात हाइकु

संकलन में—
तुम्हें नमन- किसकी है तस्वीर
नव वर्ष अभिनंदन- दादी कहती हैं
हिंदी के 100 सर्वश्रेष्ठ प्रेमगीत- पिउ पिउ न पपिहरा बोल

  हाइकु नवगीत

छिड़ता युद्ध
बिखरता त्रासद
इंसां रोता है

जन संशय
त्रासदी ओढ़कर
आगे आया है

महानाश का
विकट राग फिर
युग ने गाया है

पल में नाश
सृजन सदियों का
ऐसे होता है

बाट जोहती
थकित मनुजता
ले टूटी कश्ती

भय की छाया
व्यथित विकलता
औ फाकामस्ती

दंभ जनित
कंकाल सृजन के
कोई ढोता है

उठो मनुज
रोकनी पड़ेगी, ये
पागल आँधी

आज उगाने होंगे
घर घर में
युग के गांधी

मिलता व्योम
विरासत में, युग
जैसा बोता है

1 अप्रैल 2005

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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