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अनुभूति में ज्योत्स्ना मिलन की रचनाएँ

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तितली का मन
दरवाज़ा
पीठ
रात
लगातार

 

 

करवट

चरमराते तखत पर
लेटे लेटे
रात
बहुत देर सोचते रहते वे
करवट बदलने के बारे में
उनके लिए
करवट बदलने से आसान था
उसके बारे में सोचना
अपने से अलग
रखा जा सकता था घर को
सोचते हुए।

करवट बदलने पर से
हड़बड़ा सकता है घर

घिर आ सकता है
तखत के गिर्द
वे चाहते थे
तखत
कम से कम दे
अपने होने का प्रमाण
इसके लिए ज़रूरी था
उनका
बहुत देर एक करवट सोना
और इसके लिए
ज़रूरी था
बहुत देर करवट बदलने के बारे में सोचना।

१४ जनवरी २००८

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