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अनुभूति में कविता रावत की रचनाएँ-

असहाय वेदना
इंसानियत भूल जाते जहाँ
जग में कैसा यह संताप
लाख बहाने

 

लाख बहाने

लाख बहाने पास हमारे
सच भूल, झूठ का फैला हर तरफ़ रोग,
जितने रंग न बदलता गिरगिट
उतने रंग बदलते लोग।
नहीं पता कब किसको
किसके आगे रोना-झुकना है,
इस रंग बदलती दुनिया में
कब कितना जीना-मरना है।

नहीं अगर कुछ पास तुम्हारे, तो देखो!
कोई कितना अपना-अपना रह पाता है,
अपनों की भीड़ में तन्हा आदमी
न रो पाता न हँस पाता है।
फेहरिस्त लम्बी है अपनों की
हैं इसका सबको बहुत खूब पता,
पर जब ढूँढ़ो वक्त पर इनको
तो होगा न कहीं अता-पता

२३ फरवरी २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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