| 
                   
                  लालित्य ललित 
                  
                    
					
                  जन्म- २७ जनवरी, १९७० को दिल्ली 
					में 
					शिक्षा- एम. ए., पी-एच. डी. (साठोत्तरी हिन्दी व्यंग्य साहित्य 
					में युगबोध), खेल व विज्ञान पत्रकारिता में सर्टिफिकेट कोर्स। 
					 
					कार्यक्षेत्र-  
					वर्ष १९९५ से नेशनल बुक ट्रस्ट की विभिन्न पुस्तकमालाओं के 
					अंतर्गत पुस्तकों का संपादन तथा उनके द्वारा उत्तसाक्षरता 
					कर्मियों व नवसाक्षरों के लिए मासिक पत्रिका ‘साक्षरता संवाद’ 
					का संपादन। प्रौढ शिक्षा निदेशालय द्वारा नवसाक्षर लेखन पर 
					केन्द्रित मूल्यांकन समिति में सदस्य। नवसाक्षर लेखन 
					कार्यशालाओं तथा राष्ट्रीय स्तर पर संगोष्ठियों के आयोजन में 
					महत्वपूर्ण भूमिका। अनेक प्रतिष्ठित रचनाकारों के साक्षात्कार 
					का अनुभव। 
					 
					प्रकाशित कृतियाँ-  
					कविता संग्रह- गाँव का खत शहर के नाम, दीवार पर टँगी तस्वीरें, 
					यानी जीना सीख लिया, तलाशते लोग, कविता संभव (संपादित), इंतजार 
					करता घर, चूल्हा उदास है। 
					साक्षात्कार संग्रह- ‘संवाद’ (२१ साहित्यकारों से लिए गए 
					साक्षात्कार पर केंद्रित पुस्तक)  
					इसके अतिरिक्त नवाक्षरों को लिये लेखन तथा विभिन्ने 
					पत्र-पत्रिकाओं-विशेषांकों तथा पुस्तकों के संपादन व सह लेखन 
					का दीर्घ अनुभव। 
					 
					सम्मान व पुरस्कार- 
					वर्ष १९९१-१९९२ में लगातार दो वर्ष श्रेष्ठ कवि का सम्मान 
					हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा, पहले ‘सद्भावना दर्पण’ 
					पुरस्कार से छत्तीसगढ़ (रायपुर) से प्रकाशित ‘सद्भावना दर्पण’ 
					साहित्यिक पत्रिका द्वारा, ‘साक्षरता संवाद’ के कुशल संपादन 
					हेतु दुष्यंत कुमार राष्ट्रीय संग्रहालय भोपाल द्वारा तथा 
					रोटरी क्लब दिल्ली अपटाउन द्वारा पुरस्कृत 
					
                  ईमेल-
					
					lalitmandora@gmail.com  
               | 
              
                | 
              
              
                  
        
                  
        
                   अनुभूति में
                  लालित्य ललित 
                  की रचनाएँ- 
        
                  छंदमुक्त में- 
					आज की परिभाषा 
					गाँव का खत शहर के नाम 
					फूल पत्ती और तितली 
                  यात्राएँ 
					साहब और बड़े साहब 
					
                    
                   |