अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मनोरंजन तिवारी की
रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
अनगढ़ कविता
ऐसा क्यों होता है
कविता सी कुछ
खो गई है मेरी कविताएँ कहीं
मेरी कविता
मैं कवि नहीं हूँ

छंदमुक्त में-
अंकुर
दिल पर ले यार
प्रकृति
माँ भी झूठ बोलती है
लड़कियाँ

 

  अंकुर

आग लगानी है
एक सुंदर बाग मन- मन्दिर में
एक बार तो आग लगानी होगी
जल जाने देना होगा
सारे खर-पतवार जंगली पौधो को
मिट जाने देना होगा खाक में
सारे झाड- झंखाड़
और परजीवी जहरीली घासों को
जो अवरूद्ध कर देती हैं
फूलों को विकसित होने से
नये फूटते अंकुर को दाब देती हैं
वंचित कर देती हैं पोषक तत्वों से
हवा पानी सब धूप खुद हड़प लेती हैं
एक बार तो
दृढ़ता और सख़्ती का हल चलाना होगा
अगर सजाना है
एक सुन्दर बागवां मन-मंदिर में
एक बार तो आग लगानी ही होगी
भिगोना होगा आँसुओ की धारा से
बंजर पड़ी ज़मीं को
गल जाने देना होगा
शेष बची सूखी जड़ों को
मिट्टी की उर्वरता की शक्ति तभी बढ़ेगी
नये अंकुर फूटेंगे तभी
मुस्कुराएँगे सब
शिशु पौधे जीवन की नव उमंग से
महकेंगे फूल बाग मे
सुंदर बगिया तभी सजेगी।

८ दिसंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter