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अनुभूति में मोहन कुमार डहेरिया की कविताएँ

कविताओं में-
एक अनाम रंग के लिए
कोई नहीं जानता
घेरा
फिर किसी को याद करते हुए
मेरे अंदर कुछ है
रात
वापसी

 

कोई नहीं जानता

कोई नहीं जानता
किस पर्दे के पीछे छुपा है किसके स्वप्नों का उद्गम
कितनी दूर तक जाएँगे किसके पाप के छींटे

यूँ तो एक का चाँटा होता है दूसरे का गाल
किसी तीसरे की आत्मा को जकड़ सकती है पर
अपमान की अनुगूँज
जैसे कभी-कभी
संवादहीनता पर चली बहस तो रह जाती है काफी पीछे
पैदा कर देता शब्दों का शोर एक नया सन्नाटा

लिहाज़ा
कितनी भी समृद्ध हो किसी भी पीढ़ी की विरासत
चाहे जितना उन्नत विज्ञान
कौन लिख सका है पेड़ों की यात्राओं का इतिहास
मनुष्य की समझ से बाहर आज भी परिंदों के मजाक

फिर इन दिनों तो ऐसी फिसलन
कहा नहीं जा सकता कुछ भी दावे के साथ
कि चमक के नेपथ्य में है कितना गहरा दलदल
किस शुभकामना के पीछे कैसी आशंका
और वह जो छू रहा नई-नई बुलंदियाँ
क्या बता सकता है
रखे उसने जहाँ-जहाँ पैर
सीढ़ियाँ ही थीं नहीं किसी की पीठ या पेट
इसलिए जो निष्कलंक बेशक रहें निष्कलंक
पापी के लिए नहीं पर ऐसी भी दुत्कार
क्योंकि कोई नहीं जानता
धँसा जा रहा जो आज ग्लानि तथा अपमान से जमीन में
धरती के नीचे ही हों उसके शिखर

24 नवंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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