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अनुभूति में डॉ. नवीनचंद्र लोहानी की
रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कुछ भी करते हुए
जिद्दी रात
पहाड़
पहाड़ की सुबह
वे कितने बदनसीब होते हैं
हमें कविता सुननी है

  कुछ भी करते हुए

विश्वयु़द्ध से चलते हुए
वे कविता तक पहुँचते हैं फिर
नाटो सीटो तक
इस तरह माया जाल का स्पूतनिक
चढ़ता है आगे
लल्लू तुम लाल हो
रायबहादुर हो तुम

चलो कविता है शिमला से
रूस, कविता वहीं से मिलेगी
चलो कच्छे में मार्क्सवाद का नाड़ा डालें
नेहरू के समाजवाद का झगड़ा
ज्योति वसु से ठीक कराएँ
इस तरह खर्च करें कविता का वक्त
और राजनीति पर बात करें

१७ अक्तूबर २०११
 

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