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अनुभूति में डॉ. नवीनचंद्र लोहानी की
रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कुछ भी करते हुए
जिद्दी रात
पहाड़
पहाड़ की सुबह
वे कितने बदनसीब होते हैं
हमें कविता सुननी है

  पहाड़
धुएँ की सफेद 
मटमैली
चादरें लपेट 
बूढ़ा पहाड़
सफेद बालों के बीच
अपना रोता कलपता चेहरा
खोजता है।
दुःख की बरसात 
हो गयी है शुरू
और चौतरफा उग आये है
नये-नये नाले।
 
१७ अक्तूबर २०११
 

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