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अनुभूति में नीलम मिश्रा की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
अनवरत
कुछ भी हो सकता है
एक मुट्ठी
बेटी
यकीनन

 

बेटी

समझदार होती बेटी,
कुछ इस तरह होती है,
जैसे बारिश के बाद का इन्द्रधनुष
काली घटा की घनघोर बारिश के बाद,
हरी, धुली, स्वच्छ और मौन प्रकृति
बेटी का बड़ा होना, उसका गुनगुनाना
माँ की जानबूझ कर की गई गलतियों पर,
उसका झुन्झुन्लाना, उसका रूठ जाना,
बहुत कुछ शामिल है अब उसके साथ,
जिसे भेजा है, खुदा ने मेरे पास,
मेरी बेटी की शक्ल में,
वो है एक समझदार बेटी,
होनहार बेटी
मेरे बगैर
बालिका वधू देखती,
अन्याय के प्रति जागरूक होती,
नित नए प्रश्न पूछती,
अवाक, हैरान, ठगी सी खड़ी मैं
देखती उसे प्रति पल बड़ी होते,
मेरी हर इच्छा का ध्यान रखते हुए,
अपनी बातों को मानने को बाध्य करती,
अपनी राह को प्रशस्त करती हुई, भी
अभी इतनी बड़ी तो नही हुई है वो
जो देख पाये, अपने आपको,
मेरे ब-गैर, मेरी छाया के ब-गैर

७ नवंबर २०११

 

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