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अनुभूति में पद्मा मिश्रा की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
आओगे न बाबा
खामोशियाँ
जागो मेरे देश
माँ
शीत से काँपती

 

` माँ

माँ औपचारिकताओ में में नहीं
हमारी संवेदनाओं में जीती है
जब हम रोते हैं
तो रोती है माँ
हमारी खुशियों में, सुखों में
हमेशा साथ होती है- माँ
जिंदगी के अकेलेपन में
साथ कोई न हो
पर ममता क़ि छाँव बनी
हमारे आसपास होती है-माँ
हमारे आँसुओं से दर्द का अहसास मिटाती
सर्द होठों पर
सुकून क़ी एक मुस्कान होती है- माँ
साथ न रहकर भी हमारी यादों में
पल पल साथ होने का विश्वास होती है- माँ
जग की उपेक्षाओं में, जीवन संघर्षों में
नेह रस बरसाती
एक स्नेह भरा हाथ होती है-माँ

१ फरवरी २०२२

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