अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में परिचय दास की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
कथा जैसी
दृश्य में कविता
पर्वों की तरह फिल्में


 

`

दृश्य में कविता

सिनेमा एक दृश्य-भाषा है
जिसमें हम देख लेते हैं अपनी छवियाँ
अपने दुख-सुख
अपना उछाह
अपनी मजबूरी
हम उस में जीते हैं अपनी सच्चाई
अपनी कल्पना
अपनी फंतासी
अपना सच केवल खुरदुरा यथार्थ नहीं होता
उस में ज़रूर कुछ ऐसा होता है
जिस से हमारा रूपक बनता है
जो केवल जिए सच को ही सच मानते हैं
वे सच को थोड़ा कमतर बनाते हैं
ज़िंदगी एक उत्प्रेक्षा भी है
जिस में भरी रंगावली है
तभी तो वह रंगों का संकुल है
एक ऐसी भाषा रचती पृथ्वी,
जिसमें विविध आयाम हैं
सिनेमा की तरह है ज़िंदगी
कुछ उसी तरह
कुछ उस से भिन्न प्रकट-
अकथ शब्दों को आकार देती हुई ...

१५ जुलाई २०१६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter