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अनुभूति में परिचय दास की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
कथा जैसी
दृश्य में कविता
पर्वों की तरह फिल्में
 

` पर्वों की तरह फिल्में

फिल्में पर्व बन जाती हैं
हमारी जिजीविषा का
हमारे संघर्ष का
हमारे सपनों का
हमारी आकुलता का
हमारे धैर्यशील वर्तमान का
हमारे सुदूर भविष्य का।
बेहतर फिल्में हममें ज़िंदगी का भरोसा जगाती हैं
केवल हम अकारथ नहीं हैं
बताती हैं
चुनौतियाँ भरती हैं हममें
ज़िंदगी कितनी अमूल्य है
यह हम सहज ही जान लेते हैं।
थोड़ी सतर्कता से वहाँ
फिल्म की साकार-भाषा हमें बिकाऊ होने से
विरत करती है
वह अन्वेष करती है हममें हमारा विराट
फिल्में हमें दर्शाती हैं कि लघुता में कितनी दीर्घता है
अपने प्रतिबिम्बों को समकोण पर
उपस्थित करती हुईं...

१५ जुलाई २०१६

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