अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में पूनम शुक्ला की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
किताबी पढ़ाई
गुलाबी रंग
बोझ
वक्त कम है
समाधान

 

गुलाबी रंग

आज फिर लिया मैंने
एक गुलाबी रंग
जैसे ही कम पड़ने लगता है
गुलाबी रंग
उठा लाती हूँ
कभी बाल्टी, कभी चादरें
कभी कपड़े

जिन्दगी का चलता ये धारावाहिक
आ जाता है जब भी
एक भावुक मोड़ पर
गुल होने लगती है रोशनियाँ
बढ़ने लगता है अँधेरा
रुँधने लगते हैं पात्रों के गले
खुलने लगते हैं भीतरी दरवाजे
और सुनाई पड़ने लगती है
कुँडली मारे भीतर सोए
इच्छाओं के शेष नाग की
फुफकारने की आवाज
मैं झट से खरीद लाती हूँ
गुलाबी रंग
और उड़ेल देती हूँ भीतर बाहर

दुनिया रचने वाले ने
हमारे लिए ही तो
बनाया है ये गुलाबी रंग
ताकि बची रहे
उसकी जमात
ये पूरी कायनात
जो टिकी है हमारी इच्छाओं के
शेष नाग के फन पर ।

२४ फरवरी २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter